
उत्तर प्रदेश की तस्वीर तेजी से बदल रही है। अब राजनीतिक गढ़ के साथ-साथ लखनऊ धीरे-धीरे औद्योगिक गढ़ भी बनता जा रहा है। इसी के साथ औद्योगिक राजधानी का तमगा कानपुर से खिसकता जा रहा है। केंद्रीय एमएसएमई विभाग के मुताबिक यूपी में छोटी इकाइयों की संख्या सबसे ज्यादा लखनऊ में हो गई है। दूसरे नंबर पर गाजियाबाद आ गया है और कानपुर तीसरे स्थान पर सरक गया है। पूरे यूपी में कुल 19.32 लाख से ज्यादा एमएसएमई इकाइयां है।
एमएसएमई इकाइयों की संख्या के मामले में लखनऊ नंबर वन हो गया है। लखनऊ में 1.11 लाख इकाइयां हैं। गाजियाबाद में 1.03 लाख इकाइयां हैं तो कानपुर में 82 हजार से ज्यादा इकाइयां हैं। प्रदेश में केवल गाजियाबाद और लखनऊ ही दो जिले हैं जहां छोटी इकाइयों की संख्या एक लाख से ज्यादा है। इससे पहले एमएसएमई इकाइयों की संख्या सबसे ज्यादा कानपुर में थी
औद्योगिक विस्तार की बात करें तो अभी भी पश्चिम और मध्य यूपी काफी समृद्ध हैं। पूर्वांचल और बुंदेलखंड इस मामले में अभी भी पीछे हैं लेकिन अच्छी बात ये है कि कभी औद्योगिक रूप से बुरी तरह पिछड़े इन इलाकों में उद्योग-धंधों की संख्या में तेजी आई है। देवरिया जैसे जिले में करीब 25 हजार इकाइयां हैं। ये संख्या झांसी, बाराबंकी, हापुड़ और रायबरेली जैसे जिलों से भी ज्यादा है। बलरामपुर, मऊ, गोंडा, बलिया और चंदौली में भी उद्योगों की संख्या तेजी से बढ़ी है। इन जिलों में औसतन 15 हजार से ज्यादा इकाइयां हैं। पहले फरुर्खाबाद में ज्यादा इकाइयां थीं। आज अमरोहा (13,088) और फरुर्खाबाद (13,139) में औद्योगिक विकास लगभग बराबरी पर आ पहुंचा है।
बेहतर बुनियादी ढांचे की वजह से वाराणसी और गोरखपुर में भी औद्योगिक विकास अप्रत्याशित रूप से बढ़ा है। शीर्ष 10 औद्योगिक जिलों की सूची में वाराणसी चौथे स्थान पर आ गया है। गोरखपुर ने तेज विकास करते हुए सूची में जगह बना ली है। बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने की होड़ में कानपुर पिछड़ गया। जिसका नतीजा सामने है और इंडस्ट्री यहां से खिसक गईं।
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