
इमाम-ए-हुसैन की शहादत से कांप उठी थी पूरी कायनात कर्बला का वो खौफनाक मंजर जिसे देखकर नमः हो जाएंगी आपकी भी आंखें
56 वर्ष पांच माह पांच दिन की आयु 61 हिजरी (680 ई०) 72 जख्म शरीर पर थे
संवाददाता वहीदुल्लाह चौधरी गोंडा
गोंडा बभनजोत। नबी-ए-करीम के नवासे इमाम-ए-हुसैन की शहादत से पहले भी मुहर्रम की दसवीं तारीख का महत्व रहा है। इस दिन की काफी फजीलतें हैं। इस दिन को यौमे आशूरा कहा जाता है। अल्लाह के पहले नबी हजरत आदम (अ०स०) की तौबा कुबूल हुई थी। हजरत नूह (अ०स०) की कश्ती एक भयंकर तूफान से जूदी पहाड़ पर रुकी थी। हजरत मूसा (अ०स०) को बादशाह फिरऔन के जुल्म से निजात, हजरत अय्यूब (अ०स०) को लंबी बीमारी से लाभ मिला। हजरत युनुस (अ०स०) को मछली के पेट से बाहर आए थे। आशूरा के दिन यानि दस मुहर्रम को एक बहुत ही अहम और गम से भरा हुआ वाक्या भी पेश आया था। जिसकी वजह से इस दिन को इमाम-ए-हुसैन की शहादत से याद किया जाता है।
कर्बला के मैदान में इमाम की शहादत का ग़म पूरी दुनिया में मनाया जाता है। हक और बातिल की जंग में इमाम के बहत्तर साथी शहीद हुए थे। इनका जन्म 8 जनवरी 626 ई० ‘मक्का शरीफ’ में हुआ था। इमाम की न्याय और लोकप्रियता से आताताई क्रूर शासक यजीद का सिंहासन हिल रहा था। उसने इमाम से कहा कि तुम मुझे इस्लाम का ‘खलीफा’ मान लो और अपने हाथ को मेरे हाथ पर रखकर बैअ्त ले लो।
यजीद की बदकारियां फेमस थीं। इसलिए इमाम ने उससे बैअ्त लेने से मना कर दिया। और चार ‘शाबान’ 61 हिजरी में मदीना छोड़कर कूफा शहर रवाना हो गये। इमाम के साथ आपके परिवार के लोगों के अलावा कुछ जांनिसार साथी भी थे। आपकी शहादत से पूर्व आपके वफादार साथी और घर के लोग शहीद किये जा चुके थे। उनमें आपके 6 माह का मासूम लाडला हजरत अली असगर, बड़े बेटे अली अकबर, भतीजे हजरत कासिम, भाई हजरत अब्बास, हजरत अब्दुल बिन मुस्लिम, हजरत जाफर, हजरत मुहम्मद बिन अकील वगैरा सामिल हैं। आताताई क्रूर शासक यजीद के हुक्म से सात मुहर्रम से इमाम-ए-हुसैन और उनके साथियों के लिए पानी बंद कर दिया गया था।
तीन दिन के भूखे-प्यासे इमाम के वफादार साथियों ने यजीद की फौजों से जमकर मुकाबला किया। और एक-एक करके शहीद होते रहे। 1 अक्टूबर 680 ई० जुमा के दिन आपके शरीर पर क्रूर शासक यजीद के सिपाहियों ने बहत्तर जख्म दिये। 56 वर्ष 5 माह 5 दिन की आयु 61 हिजरी (680 ई०) में आपको शहीद कर दिया गया। खेमे में आग लगा दी गई। पर्दानशीं बीबियों को चार दिन तक कैद रखा गया। कर्बला के तपते रेगिस्तान में शहीदों की लाशों पर घोड़े दौड़ाए गये और कई दिनों तक बेकफन कर्बला के मैदान में पड़ी रहीं।
यज़ीदयों ने इमामे हुसैन पर ज़ुल्म व सितम ढाने में कोई कसर बाकी ना रखी। उसी इमाम हुसैन की बारगाह में खिराजे अकीदत पेश करने के लिए गुलामाने इमामे हुसैन ने जामिया अहले सुन्नत क़ादिरया गुलशने रज़ा लोथर पुर भरपुरवा की सहन में 10 रोज़ा ज़िक्रे इमामे आली मक़ाम की महफ़िल मुनअकिद की।
इस महफील में बाहर से आए हुए मेहमान मुकर्रीर के तौर पर मौलाना जावेद सक़ाफी ने मुसलसल 10 रोज़ा इमामे हुसैन और आप के साथयौं के हवाले से बयान किया। मनज़ूमे खिराज और आज 10 मुहर्रमुल हराम को मौलाना अली अहमद हशमती खतीब व इमाम भरपुरवा की सदारत में महफ़िल का इखतिताम पज़ीर हुआ।
इरफान प्रधान, पत्रकार वहीदुल्लाह चौधरी,रियाज़ुद्दीन, मोहम्मद अशफाक, अब्दुल मोइद, मोहम्मद इमरान, वगैरह काफी तादाद में लोग उपस्थित थे।
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