
यूपी में भर-राजभर जाति को अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग से संबंधित सर्वे का काम पूरा हो चुका है। डाटा के प्रारंभिक विश्लेषण में सामने आया है कि भर-राजभर जातियों में अति पिछड़ापन तो है, लेकिन गोंड जनजाति से उनके रोटी-बेटी के संबंध नहीं हैं। हालांकि, डाटा विश्लेषण का काम अभी जारी है। सर्वे रिपोर्ट शीघ्र ही शासन को सौंपे जाने की उम्मीद है।
अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल भर-राजभर समेत 18 जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने का प्रस्ताव दो बार भारत के महारजिस्ट्रार एवं जनगणना आयुक्त कार्यालय (ओआरजीआई) से खारिज हो चुका है। अब भर-राजभर से जुड़ी संस्था ने ओआरजीआई में फिर आवेदन देकर उन्हें एसटी का दर्जा देने की मांग की है।
इसमें कहा गया है कि तीन राज्यों महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भर को एसटी का दर्जा प्राप्त है। भर, राजभर और गोंड एक ही हैं। जब गोंड को यूपी के 17 जिलों में एसटी का दर्जा प्राप्त है तो भर व राजभर जातियों को यह हक क्यों नहीं दिया जा रहा है।
इससे संबंधित याचिका हाईकोर्ट में भी विचाराधीन है। बता दें, ब्रिटिश इंडिया में भर को क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट में शामिल जातियों के तहत रखा गया था। बाद में इन्हें विमुक्त जाति के रूप में परिभाषित किया गया और यूपी में ओबीसी श्रेणी दी गई। राजभर विमुक्त जाति में शामिल नहीं है, पर यह जाति भी यहां ओबीसी में ही शामिल है।
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