
मैनपुर की तारकशी कला को ट्रेड फेयर में विशेष पहचान मिल रही। एक जमाने में तारकशी कलाकृतियां केवल मैनपुरी राजघराने के लिए बनतीं, राजघराने के लोग शाही मेहमानों को ये अनूठी कलाकृतियां भेंट करते और अपनी शानो शौकत का एहसास कराते, लेकिन इन्हें बनाने वाले कलाकारों के नाम कोई नहीं जानता।
यूपी पवेलियन में कलाकार नेमीचंद्र शाक्य पहली बार तारकशी कला के साथ आए हैं। लोग तारकशी कला से बनते सामान देख रहे हैं। व्यावसायिक दिन होने के कारण दूसरे दिन मेले में खास भीड़ नहीं रही, लेकिन यूपी पवेलियन पहले दिन से सबका पसंदीदा बना है। 75 जिलों के सामान और दुर्लभ कला सबको पसंद आ रही।
मैनपुरी में एक परिवार तीन पीढ़ी से तारकशी कला का काम कर रहा। राजा शिवमंगल सिंह के जमाने में मुंशीलाल ने ये काम शुरू किया। इनसे लालता प्रसाद शाक्य ने ये कला सीखी। बाद में लालता प्रसाद के बेटे राम स्वरूप शाक्य ने पिता की परंपरागत कला को आगे बढ़ाया। इन्हें इसके लिए 1977 में नेशनल अवार्ड और 2005 में शिल्प गुरु अवार्ड मिला। पिता और दादा के काम से प्रभावित नेमीचंद्र ने भी इस कला को आगे बढ़ाया। इसके लिए इन्हें भी 2005 में नेशनल अवार्ड मिला। मौजूदा समय नेमीचंद्र का पूरा परिवार परंपरागत कला से जुड़ा है, पूरा परिवार स्टेट अवार्डी है।
कन्नौज के इत्र भी बिखेर रहे खुशबू
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