उत्तर प्रदेश में बैंक एटीएम की तर्ज पर अनाज एटीएम लगेंगे। राज्य सरकार राशन वितरण में क्रांतिकारी बदलाव लाने के लिए इस पर विचार कर रही है। इस बारे में उच्च स्तर पर प्रजेंटेशन हो चुका है। हालांकि, इसके लिए अनाज एटीएम के खुले बाजार में व्यावसायिक विनिर्माण होने तक इंतजार करना होगा।
वाराणसी, गोरखपुर और लखनऊ में सरकारी कोटे की दुकानों पर पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर ऑटोमेटेड मल्टी कॉमोडिटी ग्रेन डिस्पेंसिंग सॉल्यूशन यानी अनाज एटीएम लगाए गए हैं। इनको सीधे ई-पॉस मशीन से जोड़ा गया है। पुरानी व्यवस्था में कोटे की दुकान पर लगी ई-पॉस मशीन पर कार्डधारक का अंगूठा लगने के बाद एक पर्ची निकलती है। उसके बाद उसे मैनुअली तौलकर अनाज या अन्य चीजें दी जाती हैं।
अनाज एटीएम लगने पर मैनुअली तौल करने की आवश्यकता नहीं रह जाती है। जैसे ही ई-पॉस मशीन पर कार्डधारक का अंगूठा लगता है, कार्डधारक अनाज एटीएम के नीचे अपना झोला लगाकर अनाज ले लेता है। उसे कितना अनाज मिला, इसकी जानकारी भी एटीएम से निकलने वाली पर्ची से मिल जाती है। इस प्रयोग को बड़े पैमाने पर करने पर विचार किया जा रहा है। व्यवस्था प्रभावी हुई तो राशन वितरण में होने वाले भ्रष्टाचार पर प्रभावी अंकुश लगेगा।
वर्तमान में अनाज एटीएम खुले बाजार में बिक्री के लिए उपलब्ध नहीं हैं। इन्हें यूएन वर्ल्ड फूड प्रोग्राम की ओर से मुहैया कराया गया है। एक अनाज एटीएम की कीमत 15-18 लाख रुपये बताई जाती है। उच्चस्तर पर हुए प्रस्तुतीकरण के अनुसार, अगर मौजूदा अनाज एटीएम को थोड़ा मॉडीफाई करके इनका व्यावसायिक उत्पादन हो तो इनके निर्माण की लागत और बाजार मूल्य काफी कम हो सकणी है। अनाज एटीएम में तीन हिस्से होने चाहिए, जोकि कमांड मिलने पर गेहूं व चावल के साथ-साथ चीनी भी निकाल सकें। साथ ही रिफिल की वर्तमान में 5 क्विंटल की क्षमता को बढ़ाकर न्यूनतम 50 क्विंटल करना होगा।
शासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि खुले बाजार में अनाज एटीएम के उत्पादन से रेट कम होने पर इनका उपयोग बैंक एटीएम की तरह किया जा सकेगा। हालांकि, अनाज एटीएम को रिफिल करने के लिए उसके नजदीक ही आवश्यक क्षमता के साइलो (भंडारगृह) का निर्माण भी जरूरी होगा। इससे कार्डधारक कभी भी और कहीं से भी अपने हिस्से का राशन और चीनी ले सकेगा। यूपी में अन्य राज्यों के कार्डधारकों को तो इससे और भी सुविधा होगी।
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