
विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा सरकार के तीन मंत्री दारा सिंह चौहान, स्वामी प्रसाद मौर्य और धर्म सिंह सैनी सपा में शामिल हुए थे। सपा ने इन तीनों नेताओं को विधानसभा चुनाव में टिकट दिए, लेकिन सिर्फ चौहान ही जीते। पर, सपा ने चौहान को न तो संगठन में कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी और न ही विधानसभा में ही उन्हें कोई महत्वपूर्ण दायित्व दिया।
एक तरह से पार्टी ने पूरी तरह से उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया था। दूसरी ओर स्वामी प्रसाद मौर्य चुनाव हार गए तो सपा ने न सिर्फ उन्हें राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किया बल्कि उन्हें एमएलसी भी बनाया। स्थिति ये हो गई कि चौहान ने निजी कार्यक्रमों तक में पार्टी के प्रमुख लोगों से दूरी बना ली। सपा ने इस ओर ध्यान नहीं दिया और चौहान जीती सीट से त्यागपत्र देकर भाजपा में वापसी की ओर बढ़ गए।
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