
गलत संगत और जोश में उठाए गए कदम ने न सिर्फ इनकी, बल्कि परिवारवालों को भी परेशानी में डाल दिया। कोर्ट-कचहरी के चक्कर में फंसे तो उलझते ही चले गए। हाथ आई तो सिर्फ बदनामी और तबाही। हालात यह हैं कि गैंग के ज्यादातर सदस्य गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं। कौन जीवित है और क्या कर रहा, यह उनके साथी तक नहीं जानते।
गैंग के सदस्यों की मुश्किलें बढ़ती गईं तो कभी आगे-पीछे घूमने वाले करीबियों ने नजरें फेर लीं। जेल से छूटे तो बहुत कुछ बदल गया था। न कोई करीबी रहा न कोई मददगार। इनमें से आज कोई कोई खेती कर रहा है तो कोई छाेटी सी दुकान चलाकर किसी तरह दो जून की रोटी का जुगाड़ कर रहा है। कुछ गुमनामी के दौर में हैं। बीते दिनों विश्वविद्यालय में हंगामा करने वाले छात्रों के लिए यह सबक है कि जोश में होश खोने की गलती का खामियाजा कितना भारी पड़ता है।
पढ़ाई- लिखाई में ठीक थे, संगत बिगड़ी तो बन गए शूटर
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