
बिहार में जातीय जनगणना की रिपोर्ट ने उत्तर प्रदेश में भाजपा की चिंता बढ़ा दी है। लोकसभा चुनाव के माहौल में भाजपा के सहयोगी दल सुभासपा, निषाद पार्टी और अपना दल (एस) ने जातीय जनगणना कराने का समर्थन कर चुनौती खड़ी कर दी है। भाजपा ने फिलहाल इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है पर, स्थानीय स्तर पर इसकी काट तलाशना शुरू कर दिया है। प्रदेश में पार्टी के नेताओं को केंद्रीय नेतृत्व के निर्णय का इंतजार है।
प्रदेश में सपा, बसपा और कांग्रेस पहले से जातीय जनगणना कराने की मांग करते रहे हैं। हालांकि योगी सरकार 1.0 में जातीय सर्वे कराया गया था लेकिन उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई। बिहार की जातीय जनगणना की रिपोर्ट आने के बाद यूपी में भी इसकी मांग फिर तेज हो गई है।
भाजपा के एक प्रदेश पदाधिकारी मानते हैं कि बिहार की जातीय जनगणना की रिपोर्ट आने के बाद यूपी में भी यह मुद्दा गर्माया है। प्रदेश में भाजपा गठबंधन के 274 में से 90 विधायक पिछड़ी जाति के हैं। इनमें से भाजपा के 86 विधायक हैं। एनडीए के 23 पिछड़े सांसद हैं, इनमें से 22 भाजपा से हैं। ऐसे में पिछड़ी जाति को नजरअंदाज करने की हिम्मत किसी भी दल में नहीं हैं। उनका मानना है कि आगामी चुनावों के मद्देनजर यह मुद्दा तूल पकड़ता है तो पार्टी को इसकी काट तलाशनी होगी। पिछड़े वर्ग को संतुष्ट रखने के साथ अगड़ी जातियों को साधे रखना पार्टी के लिए बड़ी चुनौती का विषय है।
उधर, सूत्रों का कहना है कि पार्टी ने स्थानीय स्तर पर इस मुद्दे की काट तलाशना शुरू कर दिया है। पार्टी जब तक इसका हल नहीं तलाशती है, तब तक किसी भी नेता और जनप्रतिनिधि को इस मुद्दे पर बयान जारी नहीं करने का संदेश दिया है। पार्टी के एक अन्य पदाधिकारी बताते हैं कि इस मुद्दे पर कोई भी निर्णय केंद्रीय नेतृत्व के स्तर से होना है। लिहाजा प्रदेश नेतृत्व को केंद्रीय नेतृत्व के निर्णय का इंतजार है। पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर जो भी निर्णय लेगी, वही यूपी में भी लागू होगा।
केशव मौर्य पहले कर चुके हैं समर्थन
उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य पहले जातीय जनगणना कराने का समर्थन कर चुके हैं लेकिन बिहार की जातीय जनगणना की रिपोर्ट आने के बाद उन्होंने कोई बयान जारी नहीं किया है।
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