April 23, 2024

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बिहार और नेपाल तक भेजी जा रहीं बड़े ब्रांड की नकली दवाएं- जानिए कितने कमीशन का है खेल

हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की कंपनियों से कई बड़े ब्रांड के रैपर वाली नकली दवाएं गोरखपुर आ रही हैं, जो यहां से बिहार और नेपाल तक जा रहीं हैं। इन दवाओं पर दुकानदार को 50 प्रतिशत तक कमीशन मिलता है। इसकी वजह से नकली दवा का धंधा शहर से लेकर गांवों तक फैल गया है।

दवाओं का पैकेट रोडवेज की बसों से लगायत ऑनलाइन भेजे जा रहे हैं। कोरोना काल के बाद इस धंधे में और तेजी आई है। बीते फरवरी में अपर मुख्य सचिव ने कोडिनयुक्त कफ सीरप पर निगरानी के लिए जारी आदेश में भी इस बात का जिक्र किया है कि दवाएं अवैध तरीके से दूसरी जगहों पर भेजी जा रही हैं।

शहर के बीच बसा भालोटिया मार्केट पूर्वांचल में दवा की सबसे बड़ी मंडी है। यहां हर महीने 25 से 30 करोड़ का टर्न ओवर हो रहा है। एक दवा कंपनी के प्रतिनिधि के तौर पर काम कर चुके राजेश पांडेय बताते हैं कि कोरोना काल में दवा का कारोबार ही ऐसा था, जो चलता रहा। इसे देखकर दूसरे धंधों में लगे कुछ माफिया ने यहां अपना जाल फैला लिया।

चूंकि गोरखपुर से अगल-बगल के जिलों को वैध रूप से भी दवाएं भेजी जा रही हैं, इसलिए धंधेबाजों ने इस वैध नेटवर्क की आड़ में अपने धंधे को फैला दिया। इसके लिए हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड की धंधेबाज कंपनियों से इन माफिया ने संपर्क किया और ब्रांडेड कंपनी की दवा और नाम जैसे रैपर में दवाएं मंगानी शुरू की।

असली और नकली में फर्क करने के लिए बैच नंबर समेत अन्य तकनीकी पहलू पर जाना होगा, जो किसी ग्राहक के लिए आसान नहीं है। सूत्रों का कहना है कि नेपाल बाॅर्डर के नजदीक बसे यूपी व बिहार के छोटे-छोटे कस्बों में खुली दुकानों के जरिए इन दवाओं को खपाया जा रहा है।

साल्ट में छिपा है असली और नकली का खेल

दवा व्यवसाय से जुड़े सूत्र बताते हैं कि दवाओं के असली-नकली वाले इस खेल में असल मामला साल्ट का है। दवाओं का साल्ट महंगा नहीं होता, बल्कि उसकी टेस्टिंग, प्रचार, परिवहन और टैक्स आदि के चलते ब्रांडेड कंपनी का रेट बढ़ जाता है। उसी साल्ट और ब्रांडेड कंपनी के नाम पर बनाई गई दवा पर न तो किसी प्रकार का टैक्स देना होता है और न ही कोई अन्य खर्च। लिहाजा वह असली ब्रांड से आधे रेट पर बेच दी जाती है।

इससे दुकानदार को भी 50 प्रतिशत तक मुनाफा मिलता है। दुकानदार उस दवा को 10 से 15 प्रतिशत डिस्काउंट देकर ग्राहक को बेच देता है। गोरखपुर से नेपाल के मैदानी इलाकों में भी बड़े ब्रांड की दवाएं जाती हैं। वैध रूप से इन दवाओं को भेजने में काफी खर्च आता है।

इसलिए इनमें मुनाफा भी कम होता है, जबकि असली ब्रांड के नाम वाली ही वही दवा 50 प्रतिशत मुनाफा देती है। इसमें भी असली वाला साल्ट होता है। इसलिए अगर दवा पकड़ी भी गई तो रिपोर्ट सब स्टैंडर्ड (अधोमानक) श्रेणी में आता है। बस इस धंधे से जुड़े लोगों को कॉपी राइट का मामला मैनेज करना होता है।

नशे के लिए प्रयुक्त हो रहा कफ सीरप

नकली और मिश्रित दवाओं के इस खेल के साथ-साथ बड़े पैमाने पर कोडिनयुक्त कफ सीरप का भी खेल चल रहा है। इस साल्ट वाली कफ सीरप को बच्चों के लिए खतरनाक बताया गया है। इसमें अफीम का प्रयोग होता है, इसलिए इसका प्रयोग लोग नशे के लिए करते हैं।

बताया जाता है कि बिहार और नेपाल के सीमावर्ती इलाके में इस सीरप का बड़े पैमाने पर उपयोग हो रहा है। बिहार में शराबबंदी के चलते भी इसका प्रयोग बढ़ा है। इसे पीने वालों के मुंह से शराब की दुर्गंध नहीं आती, इसलिए भी इसकी डिमांड अधिक है।

नेपाल के मैदानी इलाकों में इसकी खपत बिहार से भी अधिक हो गई है। पिछले साल महराजगंज में करीब 700 करोड़ की जो दवाएं पकड़ी गई थीं, उसमें इसी प्रकार के सीरप और टेबलेट थे। इन पर असली ब्रांड के रैपर लगाए गए थे।

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