May 3, 2024

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चुनावी रणभेरी बजी पर अवध के चर्चित समर से योद्धा ही नदारद, इन चार सीटों पर है खास नजर

प्रत्याशियों का चयन। जातीय समीकरण। हार-जीत का गणित। मुद्दों के जरिए मोर्चेबंदी। इन सबका मेल ही चुनावी रंगत बढ़ाता है। मतदाताओं को रोमांचित करता है। रिझाता भी है। लेकिन इस बार अवध के चर्चित चुनावी समर से योद्धा ही नदारद हैं। मसलन, जिस रायबरेली व अमेठी से गांधी परिवार की पहचान है वहां से अभी कांग्रेस प्रत्याशी ही तय नहीं कर पाई। भाजपा भी बस अमेठी से स्मृति को उतार रायबरेली में मौन साधे कांग्रेस की चाल पर नजर गड़ाए है। कैसरगंज का अखाड़ा भी सूना है। भाजपा की चुप्पी यहां के चुनावी समर को रोमांचित कर रही है। बृजभूषण का सधा अंदाज कहें या फिर सपा व बसपा की राजनीतिक मजबूरी, दोनों ही मौन हैं। सुल्तानपुर से बस इंडिया ने भीम निषाद को मैदान में उतारा है। अभिषेक राज की रिपोर्ट.

रायबरेली : गांधी के गढ़ में गफलत

चर्चित रायबरेली के रण से चुनावी योद्धा नदारद हैं। चाहे कांग्रेस हो या फिर भाजपा, बसपा। कोई भी पार्टी अभी प्रत्याशी तय नहीं कर सकी है। गठबंधन के अनुसार सपा ने पहले ही कांग्रेस को रायबरेली सीट दे दी है। ऐसे में प्रत्याशी को लेकर ऊहापोह की स्थिति धीरे-धीरे रोमांचकारी मोड़ पर पहुंच गई है।

– वैसे तो रायबरेली लोकसभा का चुनाव हमेशा से दिलचस्प रहा है। 1952 से हुए अब तक के चुनाव में विपक्षी दलों पर कांग्रेस भारी पड़ी है। वर्ष 2004 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की बहू सोनिया गांधी ने यहां की राजनीति संभाली।

– सोनिया पांच बार सांसद चुनी गईं। लेकिन उनके राज्यसभा जाने से गांधी परिवार की विरासत पर असमंजस है। अभी के हालात बदले हैं। सपा के कद्दावर मनोज पांडेय भाजपा के साथ हैं। इस सब के बीच प्रत्याशियों की घोषणा नहीं होने से चर्चाओं ने अपनी चाल भी बदली है।

सुल्तानपुर : सिर्फ सपा ने खोले पत्ते

लोकसभा चुनाव का एलान होते ही समाजवादी पार्टी ने सुल्तानपुर में अपने पत्ते खोल दिए। पार्टी ने अंबेडकरनगर निवासी भीम निषाद को मैदान में उतार दिया। मूल रूप भीम आजमगढ़ के रहने वाले हैं।

– सुल्तानपुर सीट से भाजपा ने मौजूदा सांसद मेनका गांधी का टिकट होल्ड किया है। ऐसे में सपा ने भीम निषाद के रूप में मोर्चेबंदी में बाजी मारी है। लेकिन वीआइपी सीट पर भाजपा का मौन कई सवाल खड़े कर रहा है। बसपा की चुप्पी भी समीकरण की ही अहम कड़ी मानी जा रही है।

– फिलहाल भाजपा में ही करीब आठ दावेदार ऐसे हैं जिन्होंने टिकट के लिए दिल्ली में डेरा डाला है। इनमें से कुछ विधायक हैं तो कुछ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों के करीबी।

अमेठी : बस भाजपा की स्मृति इरानी

यहां से अभी तक सिर्फ भाजपा ने ही स्मृति जूबिन इरानी को मैदान में उतारा है। वह वर्ष 2014 व 2019 में भी चुनाव लड़ चुकी हैं। पहले में हार के बाद दूसरे में उन्होंने राहुल गांधी को हराया।

– वर्ष 2024 के सियासी रण के लिए स्मृति के नाम की पार्टी ने पहली ही सूची में घोषणा कर दी। अमेठी की सीट सपा-कांग्रेस गठबंधन में कांग्रेस के खाते में है। कांग्रेस यहां पर अभी तक चुप्पी साधे हुए है। स्थानीय कांग्रेसी यहां से राहुल गांधी के चुनाव लड़ने की मांग कर रहे हैं, लेकिन शीर्ष नेतृत्व अभी निर्णय नहीं ले सका है। वैसे यहां कई नाम चर्चा में हैं। सभी की नजर गांधी परिवार पर टिकी है।

– बसपा भी प्रत्याशी उतारने की तैयारी कर रही है, हालांकि नेताओं के नाम को लेकर अभी खामोशी ही है।

सुल्तानपुर : सिर्फ सपा ने खोले पत्ते

लोकसभा चुनाव का एलान होते ही समाजवादी पार्टी ने सुल्तानपुर में अपने पत्ते खोल दिए। पार्टी ने अंबेडकरनगर निवासी भीम निषाद को मैदान में उतार दिया। मूल रूप भीम आजमगढ़ के रहने वाले हैं।

– सुल्तानपुर सीट से भाजपा ने मौजूदा सांसद मेनका गांधी का टिकट होल्ड किया है। ऐसे में सपा ने भीम निषाद के रूप में मोर्चेबंदी में बाजी मारी है। लेकिन वीआइपी सीट पर भाजपा का मौन कई सवाल खड़े कर रहा है। बसपा की चुप्पी भी समीकरण की ही अहम कड़ी मानी जा रही है।

– फिलहाल भाजपा में ही करीब आठ दावेदार ऐसे हैं जिन्होंने टिकट के लिए दिल्ली में डेरा डाला है। इनमें से कुछ विधायक हैं तो कुछ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों के करीबी।

कैसरगंज : सूना पड़ा अखाड़ा
चुनाव की तारीखों का ऐलान होते ही राजनीति के रण में रोमांचकारी मुकाबले की पूरी तैयारी है। लेकिन चर्चित कैसरगंज लोकसभा सीट को लेकर अभी असमंजस है। यहां से किसी पार्टी ने उम्मीदवार घोषित नहीं किया है।

– रेसलर विवाद के बाद करीब साल भर से चर्चा में रही कैसरगंज लोकसभा सीट राजनीतिक कारणों से अभी सुर्खियों में है। तमाम कयास, राजनीतिक कलाबाजी और समीकरण के बाद भी भाजपा ने उम्मीद के अनुसार पत्ता नहीं खोला है। सपा और बसपा भी मौन का रहस्य बनाए हुए हैं।  सभी दल एक-दूसरे की चाल को गंभीरता से परख रहे हैं। वर्ष 2014 व 2019 में बृजभूषण शरण सिंह भाजपा से सांसद चुने गए।

– कैसरगंज लोकसभा सीट से अभी जिले के ही दो विधायकों की उम्मीदवारी को लेकर चर्चा है। भाजपा पैनल ने शीर्ष नेतृत्व को उनका नाम भी भेजा है। खैर…प्रत्याशी कोई भी हो, लेकिन यहां का मुकाबला रोमांचित करने वाला रहेगा।

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