मिलावटी और नकली दवाओं के खेल को बड़े सलीके से असली का जामा पहनाया जा रहा है। इसके लिए किया यह जा रहा कि एक बार फेल नमूने दोबारा जांच में पास हो जा रहे। आंकड़ों पर गौर करें तो हर साल दवाओं के करीब 200 सैंपल लिए जाते हैं, जिनमें से कुछ में मानक से कम साल्ट मिलते हैं, बाकी सब कुछ ठीक मिलता है।
अधोमानक दवाओं के मामले में संबंधित कंपनी को नोटिस जारी होता है। इसके बाद कंपनी या तो उस दवा को बाजार से हटा लेती है या फिर उस पर दोबारा जांच का दावा करती है। इसके बाद वही साल्ट जांच में सही पाया जाता है। अप्रैल 2022 से लेकर फरवरी 2024 के बीच कुल 369 सैंपल लिए गए, जिसमें से केवल 11 सैंपल ऐसे आए हैं, जिनमें साल्ट मानक से कम मिले हैं।
वहीं कई मामले ऐसे रहे, जिनका दोबारा सत्यापन हुआ तो मानक सही पाए गए। भलोटिया मार्केट से बिहार और पश्चिम बंगाल तक दवाएं जाती हैं। इस वजह से गोरखपुर में अब नकली और मिलावटी दवाइयों का धंधा भी बढ़ने लगा है। यहां हरियाणा, पंजाब, हिमाचल और उत्तराखंड में बनी दवाइयां मंगाई जा रही हैं। कई दवा विक्रेता ऐसे हैं, जो कंपनियों को सीधे ऑर्डर देकर दवा मंगाते हैं।
इस मार्केट से जुड़े लोग बताते हैं कि अब यहां 25 से 30 करोड़ रुपये का कारोबार होने लगा है। इसके अलावा करीब ढाई से तीन करोड़ का अवैध धंधा भी साथ में फल-फूल रहा है। नकली और मिलावटी दवा के धंधेबाजी पर रोक लगाने के लिए खाद्य औषधि विभाग हर महीने दवाओं के सैंपल लेता है।
विभाग से मिले आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2022-23 में जिले भर से नकली होने की आशंका में 194 सैंपल लिए गए, लेकिन जांच में इनमें से केवल पांच सैंपल सब स्टैंडर्ड (मानक से कम) पाए गए। शेष 189 नमूने पास हो गए।
जिन पांच में मानक से कम साल्ट मिले, उन्हें चेतावनी दी गई। क्योंकि साल्ट की कम मात्रा के चलते दवा का असर कम होता है, लेकिन इसका साइड इफेक्ट नहीं है, इसलिए इसे गंभीर अपराध नहीं माना गया। इसी प्रकार साल 2023-24 में अब तक 175 नमूने लिए गए हैं, जिनमें से छह नमूनों में मानक से कम मात्रा में साल्ट पाए गए।
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