May 3, 2024

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गोरखपुर से यहां भेजे जाते हैं खाद्य के नमूने, एक बार फेल हुए दोबारा जांच में हो गए पास

मिलावटी और नकली दवाओं के खेल को बड़े सलीके से असली का जामा पहनाया जा रहा है। इसके लिए किया यह जा रहा कि एक बार फेल नमूने दोबारा जांच में पास हो जा रहे। आंकड़ों पर गौर करें तो हर साल दवाओं के करीब 200 सैंपल लिए जाते हैं, जिनमें से कुछ में मानक से कम साल्ट मिलते हैं, बाकी सब कुछ ठीक मिलता है।

अधोमानक दवाओं के मामले में संबंधित कंपनी को नोटिस जारी होता है। इसके बाद कंपनी या तो उस दवा को बाजार से हटा लेती है या फिर उस पर दोबारा जांच का दावा करती है। इसके बाद वही साल्ट जांच में सही पाया जाता है। अप्रैल 2022 से लेकर फरवरी 2024 के बीच कुल 369 सैंपल लिए गए, जिसमें से केवल 11 सैंपल ऐसे आए हैं, जिनमें साल्ट मानक से कम मिले हैं।

वहीं कई मामले ऐसे रहे, जिनका दोबारा सत्यापन हुआ तो मानक सही पाए गए। भलोटिया मार्केट से बिहार और पश्चिम बंगाल तक दवाएं जाती हैं। इस वजह से गोरखपुर में अब नकली और मिलावटी दवाइयों का धंधा भी बढ़ने लगा है। यहां हरियाणा, पंजाब, हिमाचल और उत्तराखंड में बनी दवाइयां मंगाई जा रही हैं। कई दवा विक्रेता ऐसे हैं, जो कंपनियों को सीधे ऑर्डर देकर दवा मंगाते हैं।

इस मार्केट से जुड़े लोग बताते हैं कि अब यहां 25 से 30 करोड़ रुपये का कारोबार होने लगा है। इसके अलावा करीब ढाई से तीन करोड़ का अवैध धंधा भी साथ में फल-फूल रहा है। नकली और मिलावटी दवा के धंधेबाजी पर रोक लगाने के लिए खाद्य औषधि विभाग हर महीने दवाओं के सैंपल लेता है।

विभाग से मिले आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2022-23 में जिले भर से नकली होने की आशंका में 194 सैंपल लिए गए, लेकिन जांच में इनमें से केवल पांच सैंपल सब स्टैंडर्ड (मानक से कम) पाए गए। शेष 189 नमूने पास हो गए।

जिन पांच में मानक से कम साल्ट मिले, उन्हें चेतावनी दी गई। क्योंकि साल्ट की कम मात्रा के चलते दवा का असर कम होता है, लेकिन इसका साइड इफेक्ट नहीं है, इसलिए इसे गंभीर अपराध नहीं माना गया। इसी प्रकार साल 2023-24 में अब तक 175 नमूने लिए गए हैं, जिनमें से छह नमूनों में मानक से कम मात्रा में साल्ट पाए गए।

दोबारा जांच हुई तो पास हो गए नमूने
दवा कारोबार से जुड़े सूत्र ने बताया कि विभाग जांच में कोई कमी नहीं करता। हर महीने न्यूनतम 15 सैंपल लेने का जो लक्ष्य है, उससे अधिक सैंपल लिए जाते हैं, लेकिन जांच के लिए वही भेजे जाते हैं, जिनके मानक पर खरे उतरने का भरोसा होता है।

अगर ऐसा नहीं होता तो पिछले साल महराजगंज में पकड़ी गई दवाओं की बड़ी खेप के मामले में अब तक कोई रिपोर्ट क्यों नहीं आई। बताया कि गोरखपुर से नशीली व नकली दवाओं की बड़ी खेप महराजगंज जिले के ठूठीबारी इलाके में भेजी गई थी।  करीब 700 करोड़ की इन दवाओं के मामले में आगे क्या हुआ, यह पता नहीं लगा।

इसी शहर में एक बड़ी दुकान से लिए गए सैंपल पहली बार में फेल हो गए। इस पर दवा बनाने वाली कंपनी ने आपत्ति की तो उसे दोबारा जांच के लिए भेजा गया। इस बार वही सैंपल पास हो गया। जब पहली बार सैंपल फेल हो गया तो दूसरी लैब में वही सैंपल पास कैसे हो गया। मतलब यह कि या तो पहली जांच गलत हुई थी, या दूसरे की रिपोर्ट मैनेज हुई। अब इतने बड़े लेवल का खेल है तो भला कैसे नकली का कारोबार रुकेगा।

मानक से कम साल्ट, मतलब बीमारी बरकरार

जिला अस्पताल के डॉ. प्रशांत अस्थाना बताते हैं कि मानक से कम साल्ट वाली दवाएं बीमार को दो तरह से नुकसान करती हैं। एक तो जिस रोग की दवा होगी, वह उस रोग को नियंत्रित करने में कारगर नहीं होगी, दूसरे अगर वह किसी वैक्टीरिया को बेअसर करने वाली दवा है, तो कम मात्रा में होने के चलते उस पर वैक्टीरिया ही प्रभावी हो जाएगा।

मतलब उस साल्ट के प्रति वैक्टीरिया में रजिस्टेंस (प्रतिरोधक क्षमता) आ जाएगा, जिससे बीमारी नियंत्रित होने के बजाय और बढ़ जाएगी। ऐसे में बीमारी को नियंत्रित करने के लिए दवाओं का हाई डोज मरीज को देना होगा, जिससे उसके शरीर के दूसरे अंगों पर भी कुप्रभाव पड़ेगा।

डीआई जय कुमार सिंह

ने बताया कि पिछले साल एक कंपनी की दवा का नमूना जांच में फेल हो गया था। कंपनी की आपत्ति के बाद उसे दोबारा कोलकाता की लैब में भेजा गया तो नमूना पास हो गया। हर महीने दवा के दुकानों की जांच होती है। इस साल 175 नमूने जांच के लिए भेजे गए हैं, जिनमें से 121 की रिपोर्ट ठीक आई है। इसके अलावा छह नमूने सब स्टैंडर्ड पाए गए हैं। शेष 48 की अभी रिपोर्ट नहीं आई है। पिछले दो साल में जिले में एक भी दवा नकली नहीं मिली है।

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