
सियासी प्रयोगशाला अमेठी में बसपा ने भी खूब चुनावी चाल चली, पर एक भी दांव सटीक नहीं लगा। यहां बसपा का हाथी और महावत दोनों ही मात खा गए। बसपा के संस्थापक कांशीराम ने भी यहां सियासी जमीन तलाशने की कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हुए। बसपा ने अमेठी से सात बार प्रत्याशी उतारे। पार्टी दो बार दूसरे स्थान पर रही और पांच बार तीसरे स्थान पर।
कांशीराम ने 1989 में यहां से लोकसभा चुनाव में हाथ आजमाया। इस बार उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के सामने चुनावी ताल ठोंकी। काशीराम 25,400 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे। राजीव गांधी सांसद चुने गए। इसके बाद बसपा ने 1996 में चौधरी मो. इशा को मैदान में उतारा। उनका भी वही अंजाम हुआ। मो. इशा 79,285 वोट पाकर तीसरे पायदान पर रहे। इसके बाद 1998 के चुनाव में बसपा के टिकट से मो. नईम मैदान में उतरे। उन्हें भी जनता ने तीसरे स्थान पर ही रखा।
इस बार भाजपा के संजय सिंह विनर रहे। कैप्टन सतीश शर्मा दूसरे स्थान पर रहे। 1999 में बसपा से पारसनाथ मौर्या ने किस्मत आजमाई, लेकिन वह हार गए। कांग्रेस से सोनिया संसद पहुंचीं। भाजपा के संजय सिंह दूसरे स्थान पर रहे। 2004 में बसपा के चंद्रप्रकाश मिश्र मटियारी दूसरे स्थान पर रहे। राहुल गांधी यहां से सांसद चुने गए। 2009 में बसपा के अखिलेश शुक्ला राहुल गांधी से चुनाव हार कर दूसरे स्थान पर रहे। 2014 में बसपा के धर्मेंद्र प्रताप तीसरे स्थान पर रहे। इस बार कांग्रेस के राहुल गांधी विनर व भाजपा की स्मृति इरानी दूसरे स्थान पर रहीं।
सपा ने भी लगाई ताकत
समाजवादी पार्टी ने भी दो बार अपने प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे, लेकिन नतीजा सिफर रहा। 1999 में कमरुज्जमां फौजी सपा से मैदान में थे। लेकिन वह चौथे नंबर पर रहे। उन्हें महज 16,678 वोट मिले। इसके बाद 1998 के चुनाव में सपा ने शिव प्रसाद को प्रत्याशी बनाया। उनका भी वही हश्र हुआ। शिव प्रसाद भी चौथे स्थान पर रहे। उन्हें 29,888 मत मिले थे।
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